नज़राना इश्क़ का (भाग : 29)
निमय को मार्किट गए करीबन एक घंटा बीतने को था। जाह्नवी को न जाने क्यों अजीब अजीब से ख्याल आया रहे थे। उसका किसी काम में मन नहीं लग रहा था, ज्यादा काम न करने के बावजूद भी चेहरा पूरी तरह पसीने से तर हो चुका था। जिस कारण वह जल्दी से उठकर बाथरूम की तरफ बढ़ी ताकि आँख मुँह धो ले।
जैसे ही वह बाथरूम से निकली उसका फोन घनघना उठा, उसे लगा शायद निमय का कॉल होगा इसलिए वह तेजी से कमरे में भागी, स्क्रीन पर फरी का नाम उभर रहा था। उसके कुछ सेकिंडस तक अपने फोन की स्क्रीन को घूरा फिर कॉल रिसीव कर लिया।
"हेलो..!" उधर से फरी की आवाज आई।
"हे हेलो…! कैसी हो?" जाह्नवी ने खुशी जाहिर करते हुए पूछा।
"अच्छी हूँ..!" फरी ने जवाब दिया, उसके स्वर में भी खुशी झलक रही थी।
"हैप्पी होली…!" जाह्नवी ने मुस्कुराकर कहा।
"हैप्पी होली टू यू..! निमय जी को भी हैप्पी होली बोल देना मेरी तरफ से…!" फरी ने थोड़ा सा लजाते हुए कहा।
"क्यों? तुम खुद ही विश कर लेना उस बन्दर को…!" जाह्नवी ने मुँह बनाकर कहा, वह अब तक निमय के ना आने के कारण उससे बेहद नाराज भी हो गयी थी।
"हाँ..! किया तो है पर वो मैसेज सीन नहीं कर रहे!" फरी ने कहा, उसके स्वर में चिंता घुली मिली हुई सी थी।
"तो कॉल कर लो..!" जाह्नवी ने फटाक से कह दिया।
"अरे न बाबा न! मैंने आज तक किसी लड़के को कभी कॉल नहीं किया है..!"
"तो फिर उसके मैसेज सीन करने का वैट करो..! और विक्रम क्या कर रहा है.., उसके भी अब तक न कॉल आये न मैसेज..!" जाह्नवी ने पूछा।
"पता नहीं..! अभी ही उनको बोलती हूँ कि वो निमय जी और आपको विश कर दें…!" फरी ने इस बारे में अपनी अनभिज्ञता को जाहिर किया।
"ये आप आप बोलना बन्द करो यार, वरना विश का पता नहीं विष जरूर दूंगी…!" जाह्नवी मुँह बनाते हुए परेशान स्वर में बोली।
"ठीक है…! आप दोनों भाई बहन एकदम एक जैसे हो..!" फरी ने किसी मासूम बच्ची की तरह नाराजगी जताते हुए कहा।
"अरे हाँ..! मैं देख लूँ भाई कहाँ रह गया..! और सुनो अब से अगर आप आप सुना ना तो बड़ा वाला पाप करूंगी..! सीधा मर्डर..!" जाह्नवी ने मुँह बनाते हुए धमकी देकर कहा।
"तीनो मिलकर जान ले लो मुझ बच्ची की..!" फरी ने दुःखी स्वर में कहा।
"अगर आदत नहीं बदली तो पक्का..! उनका तो पता नहीं पर मेरा लिख के ले लो..!" जाह्नवी उसी भाव से धमकाते हुए बोली। फरी धीमे से हँसने लगी और कॉल कट कर दिया। जाह्नवी कुछ देर तक सोचती रही और फिर निमय को कॉल किया मगर उसका फ़ोन स्विच ऑफ बता रहा था। उसने कई बार ट्राय किया मगर हर बार यही कारण बताया रहा था। जाह्नवी के मन में अनजाना सा डर घर करके बैठ गया, वह बुरी तरह से घबरा गई। उसको ऐसा लगने लगा मानो उसका आधा हिस्सा, उसका वजूद उससे टूट रहा हो, लाख कोशिश के बाद भी वह अपने आँसुओ को नहीं रोक पाई।
"मम्मी भाई आया क्या?" उसने अपनी माँ को आवाज लगाया।
"नहीं..! अब तक तो आ जाना चाहिए था, इतनी ज्यादा भीड़ भी नहीं रही होगी।" उसकी मम्मी ने उत्तर दिया।
"पापा कहां गए?" जाह्नवी ने पूछा।
"वे तो अपने दोस्तों के साथ होली खेलने बाहर गए हैं। क्यों? क्या हुआ? सब ठीक है ना?" जाह्नवी को ऐसे सवाल पर सवाल करते देख श्रीमती शर्मा ने पूछा।
"नहीं मम्मी..! बस…. कुछ नहीं..!" कहते हुए वह बाहर गेट के पास आकर बैठ गयी। तेज धूप न होने के बाद भी उसे बेहद गर्मी महसूस हो रही थी, मन में बेचैनी के कारण चिलचिलाहट सा महसूस हो रहा था। वह निमय को बार बार कॉल लगाए जा रही थी मगर हर बार उसे स्विच ऑफ ही मिल रहा था, यह देखकर उसकी परेशानी और बढ़ गयी।
जाह्नवी अब भी बार बार निमय को कॉल लगाए जा रही थी, तभी उसको विक्रम का कॉल आया, उसे लगा शायद निमय इसके साथ हो, उसने तुरंत कॉल अटेंड किया।
"हे …!" विक्रम ने संबोधित किया।
"हाय विक्रम! भाई तुम्हारे साथ है क्या?" जाह्नवी ने सीधा पूछ लिया।
"नहीं तो, उसे मैंने कई बार कॉल किया पर हर बार उसका फोन स्विच ऑफ बता रहा है, अब बताओ फेस्टिवल पर फ़ोन स्विच ऑफ करने का क्या लॉजिक है यार?" विक्रम बोला, वह निमय से काफी उखड़ा हुआ लग रहा था। जाह्नवी यह सुनकर हैरान हो गयी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब तक वो क्यों नहीं आया, क्योंकि काम के बीच में वह कभी घूमने नहीं जाता था। "पर तुम क्यों पूछ रही हो हो? वह घर ही होगा न?" विक्रम ने जाह्नवी से सवाल किया।
इससे पहले जाह्नवी जवाब दे पाती एक दस-ग्यारह साल के बच्चे ने गेट खटखटाया। जाह्नवी ने फ़ोन साइड करते हुए उससे पूछा "क्या हुआ छोटू?"
"निमय भैया का एक्सीडेंट हो गया है दीदी!" उस लड़के ने कहा, जाह्नवी की नजरें उस मासूम बच्चे को घूरती रहीं।
"आज के दिन मजाक मत कर छोटू, जानती हूँ तुझे शरारत की आदत है…! सच बता निम्मी ने बोला है न तुझे ऐसा करने को?" जाह्नवी उसे डांटते हुए बोली।
"नहीं दीदी! भैया का रोड पे एक्सीडेंट हो गया है, कुछ लोग उन्हें हॉस्पिटल लेकर गए हैं।" उस बच्चे ने रोते हुए कहा।
"कहाँ..!" जाह्नवी ने पूछा। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था।
"मुझे नहीं पता दीदी। एक भैया ने मुझे कहा कि मैं घर जाकर बताकर आऊं..!" उस बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा और वहां से चला गया।
"हेलो…!" उसके फोन से विक्रम का स्वर उभरा।
"… ऐसा कैसे हो सकता है। प्लीज कह दो न ये बस किसी ने मजाक किया है।" जाह्नवी मानों बिखर सी गयी थी।
"मुझे नहीं पता जाह्नवी क्या सच है क्या नहीं..! तुम दस मिनट रुको मैं घर आता हूँ।" कहते हुए विक्रम ने कॉल कट कर दिया। उसके स्वर में भी परेशानी नजर आ रही थी।
जाह्नवी हताश होकर वही बैठ गयी। उसकी माँ, निमय के बारें में सुनते ही वहां आयी।
"क्या हुआ बेटा! तुमने अपनी हालत ऐसी क्यों बना रखी है?" श्रीमती शर्मा जी ने जाह्नवी के चेहरे पर हाथ फेरते हुए पूछा।
"क्या बोलू मम्मी! अभी छोटू आया था, बोल रहा था भाई का एक्सीडेंट हो गया…!" जाह्नवी ने रोते रोते कहा।
"हे भगवान! ऐसा नहीं हो सकता है!" श्रीमती शर्मा भी कटे हुए वृक्ष की भांति वही गिर पड़ी।
"उसका फोन भी नहीं लग रहा, पापा भी न जाने कहाँ चले गए हैं!" जाह्नवी बिलखते हुए बोली। दोनो को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें।
थोड़ी ही देर में विक्रम और फरी एक कार से आये। जाह्नवी और जानकी जी जल्दबाजी में कार में बैठी। दोनो के चेहरों के रंग उड़े हुए थे, जाह्नवी की हालत बेहद खराब लग रही थी। फरी उन दोनों को बड़ी बड़ी आँखों से देख रही थी, न जाने क्यों उसकी आंखें भी नम होती जा रही थी। विक्रम बिना कोई सवाल किए तेजी से वहां से निकला।
"भ...भाई ठीक तो होगा न..!" जाह्नवी ने हकलाते हुए फरी की ओर आस भरी नजर से देखते हुए कहा, उसका दिल भारी होता जा रहा था। फरी की हालत भी कुछ ज्यादा अलग न थी। जाह्नवी बार बार अपने पापा को कॉल लगाये जा रही थी लेकिन हर बार की तरह इस बार कोई रेस्पॉन्स नहीं आया।
"ह..हाँ..! उन्हें कुछ नहीं होगा!" फरी अपने एक एक शब्द पर जोर देते हुए बोली, मानो उसे इसका पूरा विश्वास हो।
"अभी तो हमें ये पता करना पड़ेगा कि उसे कौन से हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया है। मम्मी की तबियत भी तेजी से बिगड़ रही है.!" जाह्नवी परेशान स्वर में बोली।
"हमने इसका पता कर लिया है। वह पास के ही कनक हॉस्पिटल में एडमिट हुआ है, थोड़े देर में हम वहां पहुंच जाएंगे, तब तक तुम अपना और मम्मी जी का ख्याल रखो!" विक्रम ने उससे कहा। जाह्नवी उसे ऐसे देखने लगी मानो उसने कितनी बड़ी प्रॉब्लम सॉल्व कर दी हो, विक्रम उसके दर्द को बहुत अच्छे से समझ रहा था, थोड़ी ही देर में वे हॉस्पिटल पहुंच गए।
जाह्नवी अपनी मम्मी को संभालती हुई बाहर निकली, विक्रम ने फरी को इशारा किया, फरी ने जाकर उन्हें सहारा दिया। जाह्नवी ने एक नजर फरी और विक्रम की ओर देखा फिर बड़ी तेजी से हॉस्पिटल में घुस गई। थोड़ी दूर जाने पर उसे उसके पापा दिखाई दिए, उनकी आँखें नम थी। जाह्नवी तेज कदमों से उनकी ओर बढ़ी, उन्होंने हाथ से एक कमरे की ओर इशारा कर दिया।
जाह्नवी भागती हुई उस कमरे में घुसी, निमय बेड पर बेहोश पड़ा हुआ था, डॉक्टर्स ने उसके घाव को साफ करके ड्रेसिंग कर दिया था मगर उसके होश का कोई ठिकाना न था।
"भाई….!" जाह्नवी की आंखे छलछला उठी, उसने निमय को हमेशा हँसते खेलते ही देखा था, वह उसे इस हालत में देखकर ऐसा महसूस कर रही थी मानो उससे उसका सब छीन लिया गया हो।
"सॉरी मैम! बाहर चलिए, यहां रुकना अलाउ नहीं है। पेशेंट को गहरी चोट लगी है, शायद इसका गहरा असर दिमाग पर भी पड़ा है, ऐसे में इन्हें कब होश आएगा कुछ कह नहीं सकते।" एक नर्स ने उसे समझाते हुए बाहर जाने के लिए कहा।
"पेशेंट नहीं, भाई है वो मेरा समझी…!" जाह्नवी उस नर्स पर बरस पड़ी। "वो अभी होश आएगा, इसी वक्त… अगर होश में नहीं आया तो भूल जाना तेरी कोई बहन भी है..!" जाह्नवी गुस्से से चिल्लाते हुए बोली।
"मैम प्लीज! समझने की कोशिश कीजिये, वो बेहोश हैं, ऐसे में आप चिल्लाकर उनके साथ बाकी पेशेंट्स को भी तंग कर रही हैं।" एक अन्य डॉक्टर ने बड़े अदब से समझाने की कोशिश करते हुए कहा।
"वो चाहे कुछ भी हो, अगर मैं होश में हूँ इसका मतलब उसे होश में आना होगा, उसके पास और कोई ऑप्शन नहीं है…!" जाह्नवी की आँखे सूजकर लाल हो गयी थी, यह देखकर नर्स भी ढंग रह गयी थी। अब तक निमय और फरी भी जानकी जी के साथ जोर जबरदस्ती करके कमरे में आ गए थे।
"आप तो सिद्धार्थ जी के बेटे हैं न?" डॉक्टर ने विक्रम को देखकर पूछा।
"जी..!" विक्रम ने जवाब दिया।
"आप यहां क्या कर रहे हैं? आपका कोई रिलेटिव …!" डॉक्टर ने पूछा, विक्रम ने निमय की ओर इशारा किया।
"ओह्ह..! तो वो मैम भी आपके ही साथ हैं? प्लीज उन्हें यहां से ले जाइए। हम यहां कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहते..!" डॉक्टर ने निवेदन करते हुए कहा।
"फरी..!" विक्रम ने फरी की ओर देखा, जानकी जी की तबियत भी काफी खराब होती जा रही थी, निमय की हालत देखकर उन्हें सन्न मार गया, मानो काटो तो खून नहीं…!
"जाह्नवी..! निमय जी जल्दी ठीक हो जाएंगे..! यहां आपकी वजह से किसी और को परेशानी होगी तो वो इन्हें अच्छी नहीं लगेगी।" फरी ने जाह्नवी के कंधे पर हाथ रखते हुए प्यार से कहा।
"उसे अभी ठीक होना पड़ेगा..!" जाह्नवी किसी छोटी बच्ची की भांति जिद पर अड़ी हुई थी।
"तुम बात को समझती क्यों नहीं हो जाह्नवी? यहां और भी लोग हैं, उन्हें डिस्टर्ब करके तुम्हें क्या मिलेगा? हम सब जानते हैं कि तुम बहुत प्यार करती हो अपने भाई से पर डॉक्टर्स को अपना काम करने दो तभी वो जल्दी ठीक हो पायेगा…!" विक्रम उसे झकझोरते हुए डांटकर कहा। "रोने से कुछ ठीक नहीं होता.. चलो अब आँसू पोछो, ताकि जब मेरा दोस्त होश में आये तो उसे उसकी बहन हँसती खिलखिलाती हुई ही मिले, वरना हमारी तो खैर नहीं.. बोलेगा थोड़ी देर बेहोश क्या हुआ तुम लोगों ने मेरी बहन का जरा भी ख्याल नहीं रखा।" विक्रम थोड़ा सा मुस्कुराकर डांटते हुए बोला।
"और अभी मम्मी जी के लिए दवाई भी तो लेनी है…!" फरी ने बड़े ही दुलार से कहा।
"भाई…! प्लीज ऐसा मत कर ना..! देख तू मुझसे लड़.. झगड़.. सब कर पर ऐसे चुप तो मत रह..!" जाह्नवी के आंसू अब भी नहीं थम रहे थे, अब उसकी आवाज भी गले से बाहर नहीं निकल रही थी, आँसू की कुछ बूंदे निमय के चेहरे पर जा गिरी।
"फरु! तुम मम्मी जी के लिए दवाई लेकर आओ तब तक मैं इसे समझाता हूँ! पता नहीं ये कभी कुछ समझने को तैयार ही नहीं होती।" विक्रम ने फरी से कहा। फरी भी अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रही थी, उसे तो ये भी समझ में नहीं आ रहा था कि उसे ऐसा क्यों महसूस हो रहा था, फिलहाल उसके दिल में जो भाव थे वह उन्हें जाहिर नहीं होने देना चाहती थी। वह जानकी जी को लेकर बाहर गयी।
"भाई….! अब उठ जा न यार…!" जाह्नवी ने उसके हाथ को थाम में लिए कहा।
"जाह्नवी..! उसे काफी चोट लगी है, पर मेरा दिल कहता है ये जल्दी ही ठीक हो जाएगा..! मेरा यकीन मानो.. भले निमय को तुमसे ज्यादा प्यार कोई नही करता पर परवाह हम सबको है उसकी..!" विक्रम ने जाह्नवी को सांत्वना देते हुए कहा।
"ये उठेगा विक्रम…! इसे उठना पड़ेगा..!" जाह्नवी अब भी जिद पर अड़ी हुई थी।
"ओ माय गॉड! पागल मत बनो प्लीज..! ये यार तू उठ जा, तू ही संभाल अपनी बहन! हमसे तो ना सम्भल पाएगी..!" विक्रम मुँह बनाते हुए बोला।
"अरे हाँ ठीक है ना..! आह…! तुम लोग तो ढंग से बेहोश भी नहीं होने देते हो…!" निमय आँख खोलता हुआ उन दोनों की तरफ देखकर कहा।
"कुत्ता भाई…!" जाह्नवी ने गंदा सा मुँह बनाते हुए कहा।
"पेशेंट नम्बर 88 को होश आया गया…!" एक नर्स ने जाकर डॉक्टर को सूचना दी।
"यकीन नहीं होता, इतनी गहरी इंजरी के बाद भी इतना जल्दी होश आया जाना..! ताज्जुब है। उसके दिमाग की दो नसों में रक्त का थक्का जम गया है, जिससे वहां ब्लॉक्स बन गए हैं, अगर उसकी टाइम पर सर्जरी न कि जाये तो जान बचने के चान्सेस भी बहुत कम थे। ऐसे में उसके होश में आने के चान्सेस ना के बराबर थे। हमने लड़के के फादर को पूरी डिटेल्स दी हुई थी, अभी उसका दुबारा चेकअप और स्कैन करना होगा। जल्दी करो…!" डॉक्टर के चेहरे पर जमाने भर की हैरानी नजर आ रही थी।
क्रमशः...
🤫
01-Mar-2022 03:55 AM
निमय ठीक ही होगा, इमोशनल मिड पर है कहानी ...!
Reply
मनोज कुमार "MJ"
01-Mar-2022 06:27 PM
Ji shukriya aapka 💜
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अफसाना
20-Feb-2022 04:36 PM
वेरी गुड
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मनोज कुमार "MJ"
01-Mar-2022 06:27 PM
Thanks
Reply
Pamela
15-Feb-2022 09:29 AM
अच्छी कहानी है आप की 👍👍
Reply
मनोज कुमार "MJ"
01-Mar-2022 06:28 PM
Thanks
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